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Showing posts from October, 2024

Exam Day Drama: My Semester 5 Practical Story!

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  Hii guys! Kaise ho? Aaj mai apne semester 5th ke practical exam ke din ki story share karne wala hu. So, shuru se batata hu ki kaise practical exam ki date announce hui aur maine kaise preparation shuru ki. Pehle toh college me sab — teachers aur kuch students bhi — keh rahe the ki practical exams toh theory exams ke baad hi honge. Hum bhi maze me the, aaram se practicals practice kar rahe the. College ke sir hume practicals bas aise sikhate ki PDF dete aur bolte, “Copy karo, paste karo, practical complete!” Matlab practical ke naam par hum mostly bas copy-paste hi kar rahe the. Lekin tabhi ek bomb gira. Ek dum se ye announcement aayi ki practical exams theory exams ke pehle honge, aur woh bhi isi week! Ab kya bolun, hum sabka toh ekdum shock lag gaya! Abhi toh properly preparation bhi nahi hui thi aur sirf do din bache the! Dar lagne laga ki practical exams kaise honge. Maine dheere dheere practice shuru ki, par honestly, kuchh zyada aata nahi tha. Mere dimaag mein bas yahi ch...

नवरात्रि: Nine Days of Faith, Fun, and Farewell

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 नवरात्रि के वो नौ दिन जैसे सपने में बीत गए, और जब तक समझ पाया, सपना जैसे एक झटके में टूट गया। इस बार हमारी बिल्डिंग में नवरात्रि के लिए कुछ खास था—मूर्ति के लिए पहले से ही तैयारियाँ शुरू हो गई थीं। पहले हम लोग माता जी की फोटो रखने का सोच रहे थे, लेकिन फिर सबने मिलकर फैसला किया कि इस बार अम्बे माता की मूर्ति लाएँगे। तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं—हर रात मीटिंग होती, सब मिलकर चर्चा करते कि प्रसाद क्या होगा, नाश्ता क्या रहेगा, कितनी बार आरती होगी, और नवरात्रि का हर दिन कैसे मनाया जाएगा। बिल्डिंग के सभी लोग, बच्चे और बड़े, अपने-अपने सुझाव देते। हर किसी को इस बार की नवरात्रि का बेसब्री से इंतजार था। और फिर वो दिन आ गया, जब नवरात्रि का पहला दिन था। सुबह से ही एक अलग सी रौनक और खुशी सबके चेहरों पर थी। बच्चे तो बेहद उत्साहित थे—कौन-कौन से रंग के कपड़े पहनेंगे, कैसे सजेंगे, यह सोचकर ही मस्त थे। मैं भी अंदर से उतना ही उत्साहित था जितना वो छोटे बच्चे, लेकिन कॉलेज के असाइनमेंट्स और प्रोजेक्ट सब्मिशन्स की वजह से थोड़ा व्यस्त हो गया था। मेरे कॉलेज के कामों ने मुझे दिन भर बांधे रखा, इस कारण सुबह की आरती...

भीड़ में अकेला सफर || A Journey Alone in the Crowd

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 30 मिनट स्टेशन आज सुबह मैं अपने घर से कॉलेज के लिए 7:50 बजे निकला। स्टेशन पहुँचने में मुझे करीब 18 मिनट लगे। जैसे ही मैं स्टेशन पहुँचा, अपने दोस्तों का इंतजार करने लगा, क्योंकि उन्होंने कहा था, "तुम स्टेशन पर रुकना, हम दोनों फिर साथ में कॉलेज चलेंगे।" इंतजार के उस पल में मैंने अपने आस-पास के माहौल को गौर से देखना शुरू किया। मुंबई का स्टेशन हमेशा की तरह भीड़ से भरा हुआ था। लोकल ट्रेनें लगातार आ-जा रही थीं। हर एक ट्रेन के दरवाज़ों पर लोग लटके हुए थे, और फिर भी कुछ लोग ट्रेन के अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे। इतनी भीड़, इतना शोर, फिर भी लोग अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए हर मुश्किल को झेल रहे थे। स्टेशन पर हर इंसान की अपनी एक कहानी थी—कोई ऑफिस जा रहा था, कोई कॉलेज, तो कोई शायद अपने किसी सपने को पूरा करने के सफर पर था। एक तरफ, प्लेटफार्म के कोने में एक छोटी सी चाय की दुकान थी, जहाँ लोग कप में एक-एक घूँट चाय जल्दी-जल्दी खत्म कर रहे थे। उसी चाय वाले ने मुझे देखा और कहा, “भैया, चाय पियोगे?” मैंने बस मुस्कुराकर मना कर दिया। इतने में एक ट्रेन तेज़ी से प्लेटफार्म पर आई, और लोग झटपट उस प...